हिन्द न्यूज़, भीनमाल
शीतला सप्तमी होली के सात दिन बाद चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को आती है और शीतला सप्तमी को बासी खाने का भोग लगाकर शीतला माता की पूजा की जाती है।
इस साल शीतला सप्तमी शुक्रवार को है। श्रीदर्शन पंचांग कर्ता शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने बताया कि यह व्रत माताएं प्रमुख रूप से बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य और उनकी दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं। शीतला सप्तमी पर मां दुर्गा के स्वरूप शीतला माता एवं ओली माता की पूजा की जाती है। साथ ही उन्हें बासी और ठंडे खाने का भोग लगाया जाता है। इस व्रत को करने से आरोग्य का वरदान मिलता है। माता शीतला आपके बच्चों की गंभीर बीमारियों से रक्षा करती हैं। बच्चों की हर बुरी नजर से रक्षा होती है। इस त्योहार को कई स्थानों पर बासौड़ा भी कहते हैं। माताएं इस दिन गुलगुले बनाती हैं और शीतला अष्टमी के दिन इन गुलगुलों को अपने बच्चों के ऊपर से उबारकर कुत्तों को खिला दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से बीमारियां बच्चों से दूर रहती हैं। उत्तर भारत में इसे बासौड़ा कहा जाता है । जोधपुर इत्यादि कुछ स्थानों पर अष्टमी को भोग लगाया जाता है
नागरिक कल्याण मंच के अध्यक्ष माणकमल भंडारी ने बताया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान व मध्यप्रदेश के कुछ स्थानों पर इस त्योहार को ही बासौड़ा कहते हैं। जो की बासी भोजन का भोग लगाने के कारण कहा जाता है। इस त्योहार को मनाने के लिए लोग षष्ठी को बासी भोजन तैयार कर लेते हैं और अगले दिन देवी को भोग लगाने के बाद ही ग्रहण करते हैं। कहीं पर हलवा पूरी का भोग तैयार किया जाता है, तो कुछ स्थानों पर गुलगुले बनाए जाते हैं। गन्ने के रस की बनी खीर का भोग भी लगाया जाता है।
श्रीदर्शन पंचाग कर्ता शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने बताया कि स्कंद पुराण में शीतला माता के स्वरूप का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार शीतला माता गधे की सवारी करती है और हाथों में कलश, झाड़ू, सूप धारण किये रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि माता शीतला की पूजा करने से बच्चों को निरोग रहने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। बच्चों की बुखार, खसरा, चेचक, आंखों के रोग से रक्षा होती है। मां को बासी खाने का भोग लगाया जाता है। इसके पीछे ऐसा संदेश दिया जाता है कि अब पूरे गर्मियों के मौसम में ताजा ही खाने का प्रयोग करना है।